Saturday, February 11, 2012

The review petition was filed by Dr Hamidullah Bhat who was not only notorious for his association with the RSS but was also implicated and arrested by the CBI in the corruption case in 2005. Because of the indecisiveness of the Central government which is apparent in every decision of UPA-I and UPA-II. Dr Bhat also continued in the service. Mr Jawaid Rahmani, an Urdu scholar had filed a petition a PIL in 2011 which was disposed off by the Division bench of the High Court on 09.12.2011. The High Court bench held that; 1. It is pleaded that the respondents/review applicants without complying with the judgment (in as much as the respondent no.2 has already attained the age of 58 years but is still continuing as the Director of the respondent no.3 NCPUL) cannot seek review thereof; that the respondent no. 2 was the first Director of the respondent no.3 NCPUL and was not engaged under the Central Government Fundamental Service Rules applicable to the other employees of the respondent no.3 NCPUL but was engaged on special terms & conditions setting his age of retirement as 58 years and would thus remain unaffected by the amendment in the FSR enhancing the age of retirement from 58 years to 60 years; that even otherwise as per the subsequent Recruitment rules framed in the year 2006 for the post of Director, the tenure of Director is to be of three years only; that the minutes aforesaid of the meeting of the Executive Board do not apply to the post of Director; that though the documents filed along with the review application were not part of the pleadings but had been referred to at the time of hearing of the writ petition. 2. Direction to CBI to file the complete investigation report in RC 50/2005 within 10 weeks of today 3. Direction to Ministry of HRD regarding pending departmental inquiry since 2008 to pass an order in the departmental proceedings initiated against Bhat within six weeks. Dr Bhat filed a review petition before the High Court on 20.12.2011 which was dismissed saying "No ground for review is made out.Dismissed."


دہلی ہائی کورٹ نے حمید الله بھٹ کی بر طرفی کے فیصلے کو برقرار رکھا
بھٹ کی قومی اردو کونسل کی اور حکومت ہند کی ریویو کی درخواست خارج
نئی دہلی ، 11فروری 2012 :قومی اردو کونسل کے ڈائریکٹر حمید الله بھٹ پر اپنے عہدے کے ناجائز استعمال کا الزام عائد کرتے ہوئے نو جوان نقاد جناب جاوید رحمانی اور پروفیسر لطف الرحمن نے دہلی ہائی کورٹ میں  PILداخل کر کے اسکو قومی اردو کونسل سے باہر کرنے کا مطالبہ کیا تھا .انہوں نے یہ بھی دعویٰ کیا تھا کہ بھٹ اس عہدے کے لائق نہیں تھا اور اس کی تقرری غلط طریقے سے کی گئی تھی .اور بھٹ پر پہلے بھی کشمیر یونیورسٹی اور جامعہ ہمدرد میں بد عنوانی کے چارجز لگے .جس کی تفصیل اس نے وزارت براے فروغ انسانی وسائل کو فراہم نہیں کی تھی .انہوں نے عدالت عالیہ کو یہ بھی بتایا کہ بھٹ نے پہلے دن سے قومی اردو کونسل کا استحصال کیا اور 2005 میں  CBIنے اس کو گرفتار بھی کیا تھا اور وہ مقدمہ ابھی تک باقی ہے اور اسے دبا یا گیا ہے .یہ PIL فروری  2011میں داخل کی گئی تھی.اور کئی سماعتوں کے بعد اس پر 9 دسمبر  2011کو فیصلہ ہوا      اور اس فیصلے میں دہلی ہائی کورٹ نے تسلیم کیا کہ بھٹ کا تقرر اب سے پندرہ برس پہلے بھی غلط ہوا تھا (صفحہ نمبر 14) W.P.(C)NO.857/2011  اور دہلی ہائی کورٹ نے اس کو اسی دن سے ہٹادینے کا حکم دیا جس دن اس کی عمر 58 سال ہو گئی ہو .جبکہ ابھی اس کی عمر تقریباً  59سال ہے.اور ہائی کورٹ نے  CBIکو حکم دیا کہ CBIنے جس کیس میں اسے گرفتار کیا تھا اس کی انکوائری دوبارہ اور مکمل کرے اور دس ہفتوں کے اندر اپنی انکوائری کو مکمل کرے اور وزارت براے فروغ انسانی وسائل کے ویجیلنس سیکشن میں بھی اسکے خلاف ایک انکوائری پینڈنگ میں کئی برسوں سے ہے اور اسکے بارے میں جناب جاوید رحمانی اور پروفیسر لطف الرحمن نے یہ اندیشہ ظاہر کیا کہ بنام انکوائری وہ خانہ پری محض ہے اور وہ بھٹ کے ریٹائر ہونے کا انتظار کر رہی ہے ،اسی لئے اس نے اتنے برسوں میں کچھ نہیں کیا .ان کے اس اندیشے کی روشنی میں عدالت عالیہ نے اس ویجیلنس سیکشن کو حکم دیا کہ وہ 6 ہفتوں کے اندر اپنی انکوائری مکمل کر کے کاروائی کرے .یہ فیصلہ 9دسمبر 2011 کو آیا تھا جسکے بارے میں ایک اردو اخبار میں گمراہ کن بیان چھپوا کر بھٹ نے یہ تاثر دینے کی کوشش کی کہ یہ فیصلہ اس کے خلاف نہیں ہے .اور دوسری طرف اس نے قومی اردو کونسل سے ریویو اپلی کیشن ہائی کورٹ میں 20دسمبر 2011کو ڈلوا کر اس فیصلے پر نظر ثانی کی درخواست کی اور پھر اپنی طرف سے بھی ریویو اپلیکیشن ڈالی اور وزارت براے فروغ انسانی وسائل سے بھی ڈلوائی .ان درخواستوں پر بحث 20جنوری  2012کو ہوئی تھی مگر عدالت عالیہ نے اس دن کوئی فیصلہ نہیں سنایا تھا .وہ فیصلہ آج آ گیا جس میں دہلی ہائی کورٹ نے ریویو اپلکیشنوں کو خارج کر دیا اور کہا کہ ان میں عدالت سے جن بنیادوں پر نظر ثانی کی درخواست کی گئی ہے ان پر غور کرنے کے بعد ہی ہم نے فیصلہ سنایا تھا چنانچہ یہ درخواست رد کی جاتی ہے اور ہم نے جو فیصلہ 9 دسمبر2011  کو دیا ہے اس میں کسی قسم کے رد و بدل کی کوئی گنجائش ہے نہ ضرورت .دہلی ہائی کورٹ کے اس فیصلے کا پروفیسر لطف الرحمن اور جناب جاوید رحمانی نے خیر مقدم کیا اور کہا کہ دہلی ہائی کورٹ کے ایسے صاف فیصلے پر  قومی اردو کونسل اور وزارت براے فروغ انسانی وسائل کی طرف سے جو ریویو اپلی کیشن ڈلوائی گئی تھی وہ بنیادی طور پر ٹیکس پیئر کے پیسے کے غلط استعمال کی بھونڈی مثال تھی جس کی تلافی اس کیلئے ذمہ دار افسروں اور کلرکوں کی سیلری سے کروائی جانی چاہیے کیونکہ ہائی کورٹ نے بھٹ کو نا اہل اور اپنی مدت کار سے زیادہ عرصے تک کسی عوامی عہدے پر قابض رہنے کا مجرم پایا اور اسے ہٹانے کو کہا تو اس فیصلے پر ریویو کی درخواست وہ تو کر سکتا ہے مگر ادارہ یعنی   NCPUL کیسے کر سکتا ہے .اردو کونسل کی طرف سے جو ریویو اپلی کیشن ڈالی گئی تھی ایک مجرم کے دفاع میں اسکو ہائی کورٹ نے تو رد کر ہی دیا ہے مگر اردو والوں کو بھی اس کا حساب قومی اردو کونسل کے ایک ایک ذمہ دار سے مانگنا چاہیے .
رابطہ عامہ سیل 
محمدسمیع الدین 


نوٹ :اس بارے میں مزید معلومات دہلی میں جناب جاوید رحمانی سے اس نمبر09210293686 پر اور پٹنہ میں پروفیسر لطف الرحمان سے اس نمبر09835064584 پر فون کرکے حاصل کی جا سکتی ہیں .

भट्ट को उर्दू काउन्सिल के निर्देशक के पद से हटाने का अपना फैसला दिल्ली उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा
भारत सरकार ,कौमी उर्दू काउन्सिल और भट्ट की वह अर्जी ख़ारिज कर दी गई जिस में उच्च न्यायालय से अपने फैसले पर पुनर्विचार की अपील की गई थी
नयी दिल्ली , 11 फ़रवरी  2012: दिल्ली उच्च न्यायलय ने भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन कार्य करने वाली संस्था कौमी उर्दू काउन्सिल के दागी निर्देशक हमीदुल्लाह भट्ट के बचाव में दाखिल की गई भारत सरकार और कौमी उर्दू काउन्सिल (NCPUL) और हमीदुल्लाह भट्ट के अधिवक्ताओं की वह अर्जी ख़ारिज कर दी जिस में दिल्ली उच्च न्यायलय से अपने फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया गया था !दिल्ली उच्च न्यायलय ने उर्दू के प्रसिद्ध कवी एवं आलोचक प्रोफ़ेसर लुतफुर रहमान (पूर्व मंत्री ,बिहार सरकार )और प्रसिद्ध युवा आलोचक एवं कवी श्री जावेद रहमानी(प्रसिद्ध किताब ग़ालिब तनक़ीद के लेखक ) द्वारा दायर जन हित याचिका पर 09 दिसंबर 2011 को फैसला दिया था कि भट्ट को कौमी उर्दू काउन्सिल के निर्देशक के पद से तुरंत हटा दिया जाये क्योंकि वह उस पद पर रहने का उसी दिन से योग्य नहीं जिस दिन उसकी आयु  58 साल से ज्यादा हो गई ,और इस समय उस की आयु 59 साल है ,और उस के खिलाफ CBI का एक केस भी आय से अधिक सम्पति अर्जित करने का चल रहा है जिस केस में उस को CBI ने2005 में गिरफ्तार भी किया था और लगभग दो हफ्ते तक वह जेल में रहा .इस जन हित याचिका पर फैसला देते हुए उच्च न्यायलय ने जन हित याचिका कर्ताओं के अधिवक्ता श्री अर्जुन हर्कावली द्वारा पेश किये गए सबूतों के आधार पर यह भी माना कि 1997 में जब भट्ट को उर्दू काउन्सिल का निर्देशक नियुक्त किया गया तब भी इसकी नियुक्ति अवैध रूप से की गई और इस से अधिक योग्य उम्मीदवारों को छोड़ कर इस को नियुक्त किया गया ,मगर अब चूंकि इसकी नियुक्ति को 15 साल से ज्यादा वक़्त गुज़र गया अतः उस को न्यायलय छेड़ना नहीं चाहता !भट्ट को जब कौमी उर्दू काउन्सिल का निर्देशक बनाया गया उस से पहले भी भट्ट को कश्मीर विश्वविध्यालय और हमदर्द विश्वविध्यालय से भ्रष्टाचार के आरोप में निकाला गया था और फिर उस ने अपनी नियुक्ति जामिया मिल्लिया इस्लामिया में करवाई और पहले से निचले पद पर तो जैसे ही समाचारपत्रों में इसकी जामिया में नियुक्ति की खबर प्रकाशित हुई जामिया के छात्रों एवं अध्यापकों ने कुलपति कार्यालय का घेराव किया और इसकी नियुक्ति रद्द कर दी गई !उस के बाद भी यह जब कौमी उर्दू काउन्सिल में आया तो पहले दिन से इस ने उस संस्था और उस संस्था के कर्मचारियों का शोषन किया और 2005 में इस को CBI ने बड़ी रक़म और आय से कई गुना अधिक सम्पति के साथ गिरफ्तार किया !जेल से छूटने के बाद यह कौमी उर्दू काउन्सिल में वापसी केलिए निरंतर जतन करता रहा और 28 अप्रील 2009 को दोबारा कौमी उर्दू काउन्सिल आ गया !इसके आते ही उर्दू वालों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया और जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता श्री गौहर रज़ा ने और श्रीमती शबनम हाश्मी ने कौमी उर्दू काउन्सिल की तमाम कमेटियों से त्यागपत्र दे दिया और मानव संसाधन विकास मंत्री श्री कपिल सिब्बल को पत्र लिखा कि उनके त्यागपत्र का कारण भट्ट की NCPUL में वापसी है क्योंकि मैं किसी मुजरिम के साथ काम नहीं कर सकता और मुजरिम भी ऐसा जो अपने जुर्म पर शर्मिंदा न हो बल्कि अपने जुर्म को अपनी क्वालिटी समझता हो !फिर उर्दू के प्रसिद्ध आलोचक प्रोफ़ेसर शमीम हनफी ने भी NCPUL की तमाम कमेटियों से इस्तीफा दे दिया और कारण इस भ्रष्ट की वापसी को बताया मगर श्री कपिल सिब्बल के दफ्तर में पूरानी दिल्ली के जो क्लर्क हैं वह भट्ट की खाते और श्री सिब्बल को समझाते रहे कि सब ठीक है ,और यह आदमी सबसे लायक है !और श्री सिब्बल ने भी सोचा होगा कि जो व्यक्ति सरकारी पैसों से मुरली मनोहर जोशी को "उर्दू और हिंदी के माथे की बिंदी" बना चूका है उस के पालने से यह फ़ायदा है कि साठ लाख रूपये NCPUL से सालाना  ETV URDU को देकर वह अपने  और श्री सिब्बल बड़े बड़े फोटो और वीडियो हर हफ्ते चलवाता है ,फिर संस्था की मासिक पत्रिका उर्दू दुनिया में हर जगह उनके फोटो लगवाता है,इसके यह सब करने से शायद मैं भी उर्दू और हिंदी के कानों का झूमर बन जाऊंगा !और भ्रष्टाचार तो सिब्बल केलिए कभी  कोई मसला रहा ही नहीं !अतः सारी उर्दू दुनिया दुहार लगाती रही और यह उर्दू काउन्सिल में मनमानी करता रहा और मानव संसाधन विकास मंत्री ऐसी गहरी नींद सोते रहे कि उन्हें दो दर्जन सांसदों ने भी एक नहीं दो दो पत्र लिखा उर्दू काउन्सिल से तुरंत हटाने केलिए ,मगर श्री सिब्बल की नींद टूटी ही नहीं ! तब फ़रवरी 2011 में श्री जावेद रहमानी और प्रोफ़ेसर लुतफुर रहमान ने दिल्ली उच्च न्यायलय में जन हित याचिका दायर की !और भट्ट नामी इस गुण्डे की हिम्मत इतनी बढ़ चुकी थी कि 9 फ़रवरी 2011 को उच्च न्यायलय ने नोटिस भेजी जिसकी खबर 10 फ़रवरी 2011 को अख़बारों में छपी और 12 फ़रवरी2011 को इसने जन हित याचिका कर्ता श्री जावेद रहमानी पर हमला कर दिया जिसकी रिपोर्ट सरिता विहार पुलिस स्टेशन में दर्ज है ! और उस पर पुलिस ने आज तक कुछ नहीं किया मगर याचिका कर्ताओं ने हिम्मत नहीं हारी और जन हित याचिका पर बहस होती रही और 9 दिसंबर 2011 को उच्च न्यायलय ने आदेश दिया कि भट्ट को कौमी उर्दू काउन्सिल का निर्देशक बने रहने का कोई हक नहीं ,उसे हटाया जाये और CBI को निर्देशa दिया कि वह केस नंबर  RC 50/2005 ,जिसके अंतर्गत भट्ट गिरफ्तार हुआ था ,की complete investigation report 10 हफ्ते के अन्दर file करे और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के Vigilance सेक्शन में भी एक केस इसके खिलाफ पेंडिंग में था ,उसके विषय में मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह 6 हफ्ते के अन्दर अपनी Investigation मोकम्मल करके उचित कारवाई करे !यह फैसला आने पर पहले तो भट्ट ने उर्दू के एक समाचारपत्र में अपना यह बयान छपवाया कि "यह फैसला मेरे हक में है...और दुनिया का कोई कानून मुझे 60 साल से पहले यहाँ से नहीं हटा सकता "और फिर कौमी उर्दू काउन्सिल की तरफ से उच्च न्यायलय में फैसले पर पुनर्विचार की अर्जी दाखिल कारवाई ,और फिर अपनी तरफ से एक अर्जी दाखिल की और फिर मंत्रालय के कुछ अपने जैसे भ्रष्ट लोगों की मदद से मंत्रालय की तरफ से भी पुनर्विचार की अर्जी दाखिल कारवाई !जिन पर 20जनवरी 2012 को बहस हुई जिसको  Acting Chief Justice A K Sikri और  Justice Rajiv Sahai Endlaw  की   Division Bench ने सुना मगर उस वक़्त अपना फैसला नहीं सुनाया और वह फैसला आज आया जिस में पुनर्विचार की अर्जियों को ख़ारिज कर दिया गया और Acting Chief Justice A K Sikri और  Justice Rajiv Sahai Endlaw ने अपने फैसले में साफ़ कहा कि हम ने अपने फैसले में उन तमाम पहलूओं पर गौर करने के बाद  ही फैसला दिया था जिन पर गौर करने केलिए इन Review Applications में कहा गया है और पूरी बहस सुनने और तमाम  Documents को देखने के बाद फैसले पर Review की कोई ज़रुरत हम महसूस नहीं करते .अब जबकि उच्च न्यायलय ने पूरी तरह वजाहत कर दी है तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय को उच्च न्यायलय का सम्मान करते हुए तुरंत हमीदुल्लाह भट्ट को निकाल बाहर करना चाहिए ताकि यह भ्रष्ट व्यक्ति हमारे मानव संसाधन विकास मंत्री और कांग्रेस की एक तरफ तो भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने की बात करने और दूसरी तरफ भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने केलिए किसी भी हद तक जाने की फितरत को सब पर ज़ाहिर करने का सामान न बन जाये !यह मुसीबत अभी ज्यादा बड़ी इसलिए भी बन सकती है कि कई राज्यों के चुनाव अभी सर पर हैं